paryavaran pradushan nibandh : दोस्तों हम सभी जानते हैं कि आज के दौर में वातवरण में कितना प्रदूषण बड़ रहा है। बड़े-बड़े नगरों में तो घर के बाहर बिना मास्क के सांस लेना भी बीमारी का सबब बन जाता है। प्रदूषण इतनी बड़ी समस्या बन चुका है कि आज सभी विषयों में सर्वोपरी रहने लगा है। यह एक नही कई प्रकार का होता है।परीक्षा में अधिकतर इस विषय पर निबन्ध लेखन के लिए प्रश्न पूछा जाता है। तो आपको भी इस विषय पर निबन्ध लेखन करना आना चाहिए। जिससे कि यदि आपको इस विषय पर निबन्ध लिखने के लिए कहा जाए तो आप आसानी से लिख पाए। आज हम अपनी पोस्ट में आपको प्रदूषण पर निबन्ध लिखना बतायेगें।तो चलिए शुरू करते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण निबंध सरल भाषा में | paryavaran pradushan nibandh
पर्यावरण प्रदूषण : समस्या और निदान
निबन्ध
[विस्तृत रूपरेखा-
(1) प्रस्तावना,
(2) प्रदूषण के प्रकार,
(3) वायु प्रदूषण
(4) जल प्रदूषण
(5) भूमि प्रदूषण
(6) ध्वनि प्रदूषण
(7) रेडियो धर्मी प्रदूषण
(8) प्रदूषण की समस्या का समाधान
(9) उपसंहार।]
प्रस्तावना-
परी+आवरण= पर्यावरण यहाँ परी का अर्थ है चारों तरफ़ तथा आवरण का अर्थ है ओढ़े हुए या घेरे हुए अर्थात पर्यावरण एक ऐसा आवरण है जो हमे चारो ओर से घेरे हुए हैं।इस आवरण में होने वाले ऐसे अवांछनीय परिवर्तन जो वातावरण और मानव स्वाथ्य दोनों के लिए हानिकारक हो पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण का अर्थ-प्रदूषण पर्यावरण में फैलकर उसे प्रदूषित बनाता है और इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर उल्टा पड़ता है। इसलिए हमारे आस-पास की बाहरी परिस्थितियाँ जिनमें वायु, जल, भोजन और सामाजिक परिस्थितियाँ आती हैं; वे हमारे ऊपर अपना प्रभाव डालती हैं। प्रदूषण एक अवांछनीय परिवर्तन है; जो वायु, जल, भोजन, स्थल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों पर विरोधी प्रभाव डालकर उनको मनुष्य व अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक एवं अनुपयोगी बना देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवधारियों के समग्र विकास के लिए और जीवनक्रम को व्यवस्थित करने के लिए वातावरण को शुद्ध बनाये रखना परम आवश्यक है। इस शुद्ध और सन्तुलित वातावरण में उपर्युक्त घटकों की मात्रा निश्चित होनी चाहिए। अगर यह जल, वायु, भोजनादि तथा सामाजिक परिस्थितियाँ अपने असन्तुलित रूप में होती हैं; अथवा उनकी मात्रा कम या अधिक हो जाती है, तो वातावरण प्रदूषित हो जाता है तथा जीवधारियों के लिए किसी-न-किसी रूप में हानिकारक होता है। इसे ही प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण के प्रकार-प्रदूषण निम्नलिखित रूप में अपना प्रभाव दिखाते हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण,भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि।
वायु प्रदूषण–
वायुमण्डल में गैस एक निश्चित अनुपात में मिश्रित होती है और जीवधारी अपनी क्रियाओं तथा साँस के द्वारा ऑक्सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड का सन्तुलन बनाये रखते हैं। आज मनुष्य अज्ञानवश आवश्यकता के नाम पर इन सभी गैसों के सन्तुलन को नष्ट कर रहा है। आवश्यकता दिखाकर वह वनों को काटता है जिससे वातावरण में ऑक्सीजन कम होती है। मिलों की चिमनियों के धुएँ से निकलने वाली कार्बन डाइ-ऑक्साइड, क्लोराइड, सल्फर-डाइ-ऑक्साइड आदि भिन्न-भिन्न गैसें वातावरण में बढ़ जाती हैं। वे विभिन्न प्रकार के प्रभाव मानव शरीर पर ही नहीं-वस्त्र, धातुओं तथा इमारतों तक पर भी डालती हैं।यह प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर, अस्थमा तथा नाड़ीमण्डल के रोग, हृदय सम्बन्धी रोग, आँखों के रोग, एक्जिमा तथा मुहासे इत्यादि रोग फैलाता है।
जल-प्रदूषण–
जल ही जीवन है जल के बिना कोई भी जीवधारी, पेड़-पौधे जीवित नहीं रह सकते। इस जल में भिन्न-भिन्न खनिज तत्व, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं, जो एक विशेष अनुपात में होती हैं। वे सभी के लिए लाभकारी होती हैं, लेकिन जब इनकी मात्रा अनुपात में कम या अधिक हो जाती है; तो जल प्रदूषित हो जाता है और हानिकारक बन जाता है। अनेक रोग पैदा करने वाले जीवाणु, वायरस, औद्योगिक संस्थानों से निकले पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक पदार्थ, खाद आदि जल प्रदूषण के कारण हैं। सीवेज को जलाशय में डालकर उपस्थित जीवाणु कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं जिससे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और उन जलाशयों में मौजूद मछली आदि जीव मरने लगते हैं। ऐसे प्रदूषित जल से टायफाइड, पेचिस, पीलिया,मलेरिया इत्यादि अनेक जल जनित रोग फैल जाते हैं। हमारे देश के अनेक शहरों को पेयजल निकटवर्ती नदियों से पहुँचाया जाता है और उसी नदी में आकर शहर के गन्दे नाले, कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ, कचरा आदि डाला जाता है, जो पूर्णत: उन नदियों के जल को प्रदूषित बना देता है।
भूमि प्रदूषण-
भूमि पर अनावश्यक रूप से पड़े रहने वाले कचरे के कारण भूमि प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया है। इसके अलावा फसल उत्पादन में कई सारे रसायन का उपयोग किया जा रहा है और कीटनाशकों का भी उपयोग किया जा रहा है जिसके चलते मिट्टी पर कई नकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगे है तथा भूमि प्रदूषित हो रही है।
ध्वनि प्रदूषण –
विज्ञान के अनुसार 20,000 हर्ट्ज से अधिक की ध्वनि अश्र्वनिय ध्वनि होती है। किन्तु आजकल DJ, बेंड, आदि का प्रचलन बहुत बढ़ गया है और इनकी ध्वनि भी बहुत तीक्ष्ण होती है। फैक्ट्री के यंत्र, मशीनो की आवाज भी वहाँ के कर्मचारियों और मजदूरों के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। मंदिरों की घण्टियों की आवाज,वाहनों के हॉर्न की आवाज ये सभी ध्वनि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। अवांछनीय और अप्रिय ध्वनि ही शोर कहलाती है।जिससे मानव बेहरा भी हो सकता है इसके अलावा तनाव और चिड़चिड़ाहट भी इसका एक रूप हो सकता है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण–
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणु परीक्षणों से जल,वायु तथा पृथ्वी का सम्पूर्ण पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है और वह वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं,बल्कि भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हुआ है। इससे धातुएँ पिघल जाती हैं और वह वायु में फैलकर उसके झोंकों के साथ सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हो जातीं हैं तथा भिन्न-भिन्न रोगों से लोगों को ग्रसित बना देती हैं।
रासायनिक प्रदूषण–
आज कृषक अपनी कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक खादों, कीटनाशक और रोगनाशक दवाइयों का प्रयोग कर रहा है। अतः जिससे उत्पन्न खाद्यान्न, फल, सब्जी, पशुओं के लिए चारा आदि मनुष्यों तथा भिन्न-भिन्न जीवों के ऊपर घातक प्रभाव डालते हैं और उनके शारीरिक विकास पर भी इसके दुष्परिणाम हो रहे है।
प्रदूषण की समस्या का समाधान-
आज औद्योगीकरण ने इस प्रदूषण की समस्या को अति गम्भीर बना दिया है। इस औद्योगीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रदूषण को व्यक्तिगत और शासकीय दोनों ही स्तर पर रोकने के प्रयास आवश्यक हैं। भारत सरकार ने सन् 1974 ई. में जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम लागू कर दिया है जिसके अन्तर्गत प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक योजनाएँ बनायी गई हैं। प्रदूषण को रोकने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है-वनों का संरक्षण। साथ ही, नये वनों का लगाया जाना तथा उनका विकास करना भी वन संरक्षण ही है। जन-सामान्य में वृक्षारोपण की प्रेरणा दिया जाना, इत्यादि प्रदूषण की रोकथाम के सरकारी कदम हैं। इस बढ़ते हुए प्रदूषण के निवारण के लिए सभी लोगों में जागृति पैदा करना भी महत्त्वपूर्ण कदम है; जिससे जानकारी प्राप्त कर उस प्रदूषण को दूर करने के समन्वित प्रयास किये जा सकते हैं। नगरों, कस्बों और गाँवों में स्वच्छता बनाये रखने के लिए सही प्रयास किये जाएँ। बढ़ती हुई आबादी के निवास के लिए समुचित और सुनियोजित भवन-निर्माण की योजना प्रस्तावित की जाए। प्राकृतिक संसाधनों का लाभकारी उपयोग करने तथा पर्यावरणीय विशुद्धता बनाये रखने के उपायों की जानकारी विद्यालयों में पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षार्थियों को दिये जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
उपसंहार–
इस प्रकार सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण की शुद्धि के लिए वे समन्वित प्रयास किये जाएँगे, जो मानव-समाज (सर्वे सन्तु निरामया) वेद वाक्य की अवधारणा को विकसित करके सभी जीवमात्र के सुख-समृद्धि की कामना कर सकता है।
दोस्तों यदि आपको हमारी पोस्ट पसन्द आई जो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करें। हमारे साथ बने रहने के लिए धन्यवाद…