Maths all Formulas PDF | गणित के सभी सूत्र एक PDF में

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पाठ 1
वास्तविक संख्याएं

  1. यूक्लिड विभाजन प्रमेयिका ——

किन्हीं दो धन पूर्णांकों a और b के लिए दो पूर्ण सख्याएँ r व q इस प्रकार होती है कि
a=bq+r जहाँ 0 ≤ r < b
a को विभाज्य, b को भाजक, q को भागफल तथा r को शेषफल कहते हैं।
विभाज्य = (भाजक X भागफल) + शेषफल

  1. अंकगणित की आधारभूत प्रमेय——

एक प्राकृत संख्या का अभाज्य गुणनखण्डन उसके गुणनखण्डों के क्रम को छोड़ते हुए अद्वितीय होता है।

  1. 3. धनपूर्णको के HCF तथा LCM की गणना——

महत्त्व समापवर्तक (HCF) = संख्याओं में प्रत्येक उभयनिष्ठ अभाज्य गुणनखण्ड की सबसे छोटी घात
का गुणनफल
लघुत्तम समापवर्तक (LCM) संख्याओं से संबद्ध प्रत्येक अभाज्य गुणनखण्ड की सबसे बड़ी घात का गुणनफल
दो संख्याओं का गुणनफल संख्याओं का महत्तम समापवर्तक (HCF) x संख्याओं का लघुत्तम समापवर्त्य (LCM)

  1. अपरिमेय संख्या——

एक संख्या S अपरिमेय कहलाती है, यदि उसे p/q के रूप में नहीं लिखा जा सकता हो, जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q ≠ 0

  1. परिमेय संख्या—

एक संख्या S परिमेय कहलाती है यदि उसे p/q के रूप में लिखा जा सकता है जहाँ p तथा q दोनों पूर्णांक है तथा
q ≠ 0.
परिमेय संख्या का दशमलव प्रसार सात है अथवा असात आवर्ती है—
(i) परिमेय संख्या x = p/q का दशमलव प्रसार सांत होना केवल जब q = (2^m x 5^n ); जहाँ m और n ऋणेत्तर पूर्णांक हैं, के रूप का होगा।
(ii) x का दशमलव प्रसार असांत आवर्ती होगा,
यदि = q ≠ 2^m x5^n.

पाठ 2

दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्म

  1. दो चरों वाला रैखिक समीकरण ax + by + c = 0 या ax + by c के रूप का होता है, जहाँ a, b तथा c

(a ≠ 0, b ≠ 0 ) अचर वास्तविक संख्याएँ और
x,y दो चर राशियां है।

  1. दो चरों वाले रैखिक समीकरण का आलेख एक सरल रेखा होता है।
  2. रैखिक समीकरण युग्म का ग्राफिय विधि से हल—

a1x +b1y+c1 = 0, a2x+b2y+c2 = 0
के आलेखो को निरूपित करने वाली दो सरल रेखाएँ क्रमशः । तथा m एक ही ग्राफ पेपर पर खींचने पर,
(i) केवल एक हल होता है, यदि l तथा m परस्पर प्रतिच्छेदी रेखाएँ हो इस स्थिति में a1/a2 ≠ b1/ b2
(ii) अनन्त हल होते हैं, यदि l और m संपाती रेखाएँ हो इस स्थिति में
a1/a2 =b1/ b2 = c1/ c2
(iii) कोई हल नहीं होता, यदि । तथा m परस्पर समान्तर हो इस स्थिति में
a1/a2 = b1/b2 ≠ c1/c2

पाठ 3

द्विघात समीकरण

  1. द्विघात समीकरण ——

यदि p(x) द्विघात बहुपद हो तो P(x)= 0 को द्विघात समीकरण कहते हैं।

  1. विघात समीकरण के मूल या हल ——

किसी द्विघात समीकरण के मूल या हल द्विघात समीकरण की चर राशि के वे मान है जो उस समीकरण को सन्तुष्ट
करते हैं।

  1. द्विघात समीकरण ax² + bx + c = 0 के हल ज्ञात करने की विधियों

(i) गुणनखण्ड विधि द्वारा
(ii) द्विघातीय सूत्र (श्री धराचार्य सूत्र) द्वारा
i.e. x= -b ± √b²- 4ac
____________________
2a
जहाँ b² – 4ac = D (विविक्तर) से निरूपित किया जाता है।

  1. द्विघात समीकरण के मूलों की प्रकृति-

द्विघात समीकरण ax² + bx + c = 0 के मूलों के लक्षण विविक्तकर b² – 4ac पर निम्न प्रकार निर्भर करते हैं
(i) यदि b² – 4ac > 0 तथा पूर्ण वर्ग हो तो मूल वास्तविक, परिनेय और असमान होते हैं।
(ii) यदि b² – 4ac > 0 तथा पूर्ण वर्ग न हो तो मूल वास्तविक, अपरिमेय और असमान होते हैं।
(iii) यदि b²- 4ac = 0 तो मूल वास्तविक और समान होंगे।
(iv) यदि b² – 4ac < 0 तो मूल वास्तविक नहीं होंगे।

  1. द्विघात समीकरण के मूलों का योगफल और गुणनफल

किसी द्विघात समीकरण ax² + bx + c = 0 में
मूलों का योगफल = – x का गुणांक = -b/a
______________
x² का गुणांक
मुलो का गुणनफाल = अचर पद =c/a
______________
x² का गुणांक

  1. द्विघात समीकरण बनाना जब मूल दिए हुए हो

यदि द्विघात समीकरण के मूल दिए हुए हो तो द्विघात समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होती है—
x² – (मूलों का योग)+मूलों का गुणनफल = 0

पाठ 4

त्रिभुज
1.त्रिभुज की एक भुजा के समान्तर खींची गयी रेखा त्रिभुज की शेष दो भुजाओं को समान अनुपात में विभाजित करती है।

  1. त्रिभुज की दो भुजाओं को समान अनुपात में विभाजित करने वाली रेखा, तीसरी भुजा के समान्तर होती है।
  2. यदि दो त्रिभुज में संगत- भुजाओं का एक युग्म अनुपातिक हो और अन्तरित कोण बराबर हो तो त्रिभुज समरूप होते हैं।
  3. यदि दो त्रिभुजों में संगत कोणों का एक युग्म बराबर हो और उनकी संगत भुजाएँ अनुपातिक हों तो त्रिभुज समरूप होते हैं।
  4. एक त्रिभुज का एक कोण, दूसरे त्रिभुज के संगत कोण के बराबर हो तथा उनकी संगत भुजाएँ अनुपातिक हो तो त्रिभुज समरूप होगा।
  5. यदि समकोण त्रिभुज के समकोण वाले शीर्ष से कर्ण पर लम्ब डाला गया हो तो लम्ब रेखा के दोनों ओर के त्रिभुज परस्पर और मूल त्रिभुज के समरूप होते हैं।
  6. समरूप त्रिभुजों के क्षेत्रफलों का अनुपात संगत भुजाओं के वर्गों के समानुपाती होता है।
  7. एक समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग अन्य दो भुजाओं के वर्गों के योगफल के बराबर होता है।
  8. किसी त्रिभुज में यदि एक भुजा का वर्ग अन्य दो भुजाओं के वर्गों के योगफल के बराबर हो तो पहली भुजा के सामने का कोण समकोण होता है।

पाठ 5

निर्देशांक ज्यामिती
1, मूलबिदु के निर्देशांक= (0,0)

  1. दो बिंदुओ के बिच की दुरी सूत्र =

√[(x1–x2)² + (y1–y2 )²]
3, दो बिंदुओ के मध्य बिंदु का सूत्र =
[ ( x1 + x2 )/2 , ( y1 + y2 )/2]
4, दो बिंदुओ को m1:m2 के अंत: अनुपात में विभाजन करने वाला बिंदू सूत्र

  1. ∆ABC का क्षेत्रफल

1/2[x1(y2–y3) + x2(y3–y1) + x3(y1–y2)]

  1. यदि 3 बिंदुओं से निर्मित त्रिभुज का क्षेत्रफल शून्य है तो तीनों बिंदु संरेख होंगे।

पाठ 6

त्रिकोणमिति का परिचय

  1. किसी समकोण ∆ में कोण θ के लिए

sinθ= लम्ब /कर्ण
cosθ= आधार/ कर्ण
tanθ= लम्ब /आधार
cotθ= आधार /लम्ब
secθ= कर्ण /आधार
Cosecθ = कर्ण /लम्ब
2, विभिन्न त्रिकोणमितीय अनुपातों में सम्बन्ध
sinθ =1/ Cosecθ
Cosecθ = 1/ sinθ
cosθ= 1/ secθ
secθ = 1/ cosθ
tanθ= 1/ cotθ
cotθ= 1/ tanθ

  1. (90-θ) कोणों के त्रिकोणमिति अनुपात

sin (90° – θ) = cos θ
cot (90° – θ) = tan θ
cos (90° – θ) = sin θ
sec (90° – θ) = cosec θ
tan (90° – θ) = cot θ
cosec (90° – θ) = sec θ

पाठ 7

त्रिकोणमिति के कुछ अनुप्रयोग

  1. (i) दृष्टि रेखा प्रेक्षक की आँख से प्रेक्षक द्वारा देखी गई वस्तु के बिन्दु को मिलाने वाली रेखा होती है।

(ii) देखी गई वस्तु का उन्नयन कोण दृष्टि-रेखा और क्षैतिज रेखा से बना कोण होता है जबकि यह क्षैतिज स्तर से ऊपर होता है अर्थात् वह स्थिति जबकि वस्तु को देखने के लिए हमें अपने सिर को ऊपर उठाना होता है।
(iii) देखी गई वस्तु का अवनमन कोण दृष्टि रेखा और क्षैतिज रेखा से बना कोण होता है जबकि दृष्टि रेखा क्षैतिज स्तर से नीचे होती है अर्थात वह स्थिति जबकि वस्तु को देखने के लिए हमें अपने सिर को झुकाना पड़ता है।

  1. त्रिकोणमितीय अनुपातों की सहायता से किसी वस्तु की ऊँचाई या लम्बाई या दो सुदूर वस्तुओं के बीच की दूरी ज्ञात की जा सकती है।

पाठ 8

रचनाएं

1, एक रेखाखण्ड को एक दिए गए अनुपात में विभाजित करना।

  1. एक दिए गए त्रिभुज के समरूप त्रिभुज की रचना करना जबकि स्केल गुणांक दिया गया हो (स्केल गुणक एक से कम या एक से अधिक हो सकता है)।
  2. किसी बाह्य बिन्दु से किसी वृत्त पर एक स्पर्श रेखा युग्न की रचना करना ।

पाठ 9

वृतो से संबंधित क्षेत्रफल

  1. वृत्त का व्यास = 2 x त्रिज्या (r)
  2. वृत्त की परिधि = 2πr जहा r वृत्त की त्रिज्या है।
  3. वृत्त का क्षेत्रफल = πr²
  4. वृत्ताकार वलय का क्षेत्रफल = π(r1² r2 ²), जहाँ r1 क्रमशः बाह्य व अन्तः वृत्त की त्रिज्याएँ हैं।
  5. (i) वृत्त के त्रिज्यखण्ड का क्षेत्रफल

A = θ × πr²
_______
360⁰
जहाँ θ त्रिज्यखण्ड का कोण व r वृत्त की त्रिज्या है।
तथा A= ½ lr जहाँ l त्रिज्यखण्ड के चाप की लम्बाई है।
(ii) वृत्त खण्ड का क्षेत्रफल =
πθ sinθ
r² ___ – ____
360⁰ 2
जहा θ संबंधित त्रिज्याखंड का कोण है।

पाठ 10

पृष्ठिय क्षेत्रफल और आयतन
घन और घनाभ से सम्बन्धित
घनाभ ——
यदि घनाभ की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई क्रमश:
l, b व h हैं, तब
(i) घनाम का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (lb + bh+ hl) वर्ग मात्रक
(ii) घनाभ का आयतन = lbh घन मात्रक
(ii) घनाभ का विकर्ण = √l² +b² +h² मात्रक
घन ——
यदि घन की प्रत्येक कोर की लम्बाई a हो तो
i घन का सम्पूर्ण पृष्ठों का क्षेत्रफल = 6a² वर्ग मात्रक
(ii) घन का आयतन = a³घन मात्रक
(iii) घन का विकर्ण = √3a मात्रक
लम्बवृत्तीय बेलन
(i) आयतन = π 2r²h
(ii) वक्रपृष्ठ = π 2rh
(iii) सम्पूर्ण पृष्ठ = 2πr (h+r)
जहाँ r व h क्रमश: बेलन की त्रिज्या व ऊँचाई है।
लम्बवृत्तीय शंकु
(1) आयतन = ⅓πr²h
(ii) वक्रपृष्ठ = πrl
(iii) सम्पूर्ण पृष्ठ = πr (l+r)
(iv) तिरछी ऊँचाई l = √(r² + h²)
जहाँ r, h, व l शंकु की क्रमशः त्रिज्या, ऊँचाई व तिरछी ऊँचाई हैं।
गोला
गोले का आयतन = 4/3 πr³
(ii) अर्द्ध गोले का आयतन = 2/3πr³
(iii) गोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 4πr²
(iv) अर्द्ध गोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 3πr² ; जहाँ r गोले की त्रिज्या है।
शंकु छिन्नक
माना शंकु छिन्नक के आधार व शीर्ष के वृत्तीय सिरे की त्रिज्यायें क्रमश: R व r हैं। माना इसकी ऊँचाई h व तिर्यक ऊँचाई l है, तब
(i) शंकु छिन्नक का आयतन = πh/3 [ R²+ r² + Rr] घन इकाई
(ii) शकु छिन्नक का पार्श्व पृष्ठ क्षेत्रफल = πl ( R+r)
जहाँ l² = h² + (R – r)² वर्ग इकाई
(iii) शंकु छिन्नक का सन्पूर्ण पृष्ठ क्षेत्रफल
= (आधार का क्षेत्रफल) + (शीर्ष का क्षेत्रफल) + (पार्श्व पृष्ठ क्षेत्रफल)
= [πR² + πr² + π(R+r)]
= π[R² + r² + l (R+r) ] वर्ग इकाई

पाठ 11

सांख्यिकी

  1. समान्तर माध्य

(i) जब आँकड़े अवर्गीकृत हों——
चर x के मानों x1,x2, x3……..,xn का समान्तर माध्य=
लघु विधि-
यदि कल्पित माध्य A पदों की संख्या n. कल्पित नाध्य से पदों का विचलन d हो तो समान्तर माध्य
(ii) जब आँकड़े अवर्गीकृत परन्तु पदों की बारंबारता एक से अधिक हो
यदि आँकड़ों x, x2, x3………xn की बारंबारताएँ क्रमश: f1, f2,……….fn हो तो इनका समान्तर माध्य
द्वितीय विधि-यदि कल्पित माध्य A पदों की संख्या
Σ f = n, विचलन d, संगत बारंबारता f हो
तब समान्तर माध्य = A +Σfd
_______
n
(iii) जब आँकड़े वर्गीकृत हों-
यदि वर्ग-अन्तराल का मध्यमान =x संगत बारंबारता = f, बारंबारताओं का योग = n हो तो
समान्तर माध्य
लघु विधि
समान्तर माध्य=
Σfd
A +_______
n
जहाँ A कल्पित माध्य, Σfd सभी वर्ग-अन्तरालों के मध्यमानों का कल्पित माध्य से विचलन व सगत बारंबारताओं के गुणनफल का योगफल, n =Σfd= सभी बारबारताओं का योग
यदि xi तथा संगत बारंबारता fi बहुत अधिक हो तो समान्तर माध्य निम्न प्रकार ज्ञात कर सकते हैं——

  1. अवर्गीकृत आँकड़ों की माध्यिका यदि असंसाधित आँकड़ों के मानों को परिमाण के आरोही अथवा अवरोही क्रम में रखा जाए, तो इस व्यवस्था के ठीक बीच के मान को आँकड़ों की माध्यिका कहा जाता है।
  2. बहुलक – प्रेक्षणों में उस प्रेक्षण का मान जिसकी बारंबारता अधिकतम है उन प्रेक्षणों का बहुलक कहलाता है।
  3. समान्तर माध्य, माध्यिका और बहुलक में सम्बन्ध

समान्तर माध्य – बहुलक = 3 (समान्तर माध्य – माध्यिका ) बहुलक = 3 माध्यिका – 2 समान्तर माध्य

Note:- छात्रों फार्मूला टाइप करने में थोड़ी समस्या आती है इसलिए अगर कोई सा फार्मूला गलत हो गया हो इसलिए आप चेक अवश्य करें और जल्द ही हैंड राइटिंग पीडीएफ आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं जिसमें गलती नहीं मिलेगी।

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